Sunday 26 April 2015

भूकंप क्यों आते हैं, कैसे इस खतरे से बचें!

देश में जब भूकंप आने की खबरें आती हैं तो मन में एक सवाल कौंध जाता है कि आखिर क्यों आता है भूकंप? इसका उत्तर जानने के लिए हमें पृथ्वी की संरचना को समझना होगा। पूरी धरती 12 टैक्टोनिक प्लेटों पर स्थित है। इसके नीचे तरल पदार्थ लावा है। ये प्लेटें इसी लावे पर तैर रही हैं और इनके टकराने से ऊर्जा निकलती है जिसे भूकंप कहते हैं। अब सवाल उठता है कि आखिर ये प्लेटें क्यों टकराती हैं? दरअसल ये प्लेंटे बेहद धीरे-धीरे घूमती रहती हैं। इस प्रकार ये हर साल 4-5 मिमी अपने स्थान से खिसक जाती हैं। कोई प्लेट दूसरी प्लेट के निकट जाती है तो कोई दूर हो जाती है। ऐसे में कभी-कभी ये टकरा भी जाती हैं। ये प्लेटें सतह से करीब 30-50 किमी तक नीचे हैं। भूकंप का केंद्र वह स्थान होता है जिसके ठीक नीचे प्लेटों में हलचल से भूगर्भीय ऊर्जा निकलती है। इस स्थान पर भूकंप का कंपन ज्यादा होता है। कंपन की आवृत्ति ज्यों-ज्यों दूर होती जाती हैं, इसका प्रभाव कम होता जाता है। फिर भी यदि रिक्टर स्केल पर 7 या इससे अधिक की तीव्रता वाला भूकंप है तो आसपास के 40 किमी के दायरे में झटका तेज होता है। लेकिन यह इस बात पर भी निर्भर करता है कि भूकंपीय आवृत्ति ऊपर की तरफ है या दायरे में। यदि कंपन की आवृत्ति ऊपर को है तो कम क्षेत्र प्रभावित होगा। मतलब साफ है कि हलचल कितनी गहराई पर हुई है। भूकंप की गहराई जितनी ज्यादा होगी सतह पर उसकी तीव्रता उतनी ही कम महसूस होगी। मन में यह सवाल उठना स्वाभाविक है कि क्या भारत को भूकंप का सर्वाधिक खतरा है? इसके जवाब में हम पाते हैं कि इंडियन प्लेट हिमालय से लेकर अंटार्कटिक तक फैली है। यह पाकिस्तान बार्डर से सिर्फ टच करती है। यह हिमालय के दक्षिण में है। जबकि यूरेशियन प्लेट हिमालय के उत्तर में है। इंडियन प्लेट उत्तर-पूर्व दिशा में यूरेशियन प्लेट जिसमें चीन आदि बसे हैं कि तरफ बढ़ रही है। यदि ये प्लेट टकराती हैं तो भूकंप का केंद्र भारत में होगा। भूंकप के खतरे के हिसाब से भारत को चार जोन में विभाजित किया गया है। जोन दो-दक्षिण भारतीय क्षेत्र जो सबसे कम खतरे वाले हैं। जोन तीन-मध्य भारत, जोन चार-दिल्ली समेत उत्तर भारत का तराई क्षेत्र, जोन पांच-हिमालय क्षेत्र और पूर्वोत्तर क्षेत्र तथा कच्छ। जोन पांच सबसे ज्यादा खतरे वाले हैं। देश में भूकंप माइक्रोजोनिंग का कार्य शुरू किया गया है। इसमें क्षेत्रवार जमीन की संरचना आदि के हिसाब से जोनों के भीतर भी क्षेत्रों को भूकंप के खतरों के हिसाब से तीन माइक्रोजोन में विभाजित किया जाता है। दिल्ली, बेंगलूर समेत कई शहरों की ऐसी माइक्रोजोनिंग हो चुकी है। कम खतरे वाले क्षेत्र-दिल्ली रिज क्षेत्र, मध्यम खतरे वाले क्षेत्र-दक्षिण पश्चिम, उत्तर पश्चिम और पश्चिमी इलाका, ज्यादा खतरे वाले-उत्तर, उत्तर पूर्व, पूर्वी क्षेत्र। भूंकप की जांच रिक्टर स्केल से होती है। भूकंप के दौरान धरती के भीतर से जो ऊर्जा निकलती है, उसकी तीव्रता को इससे मापा जाता है। इसी तीव्रता से भूकंप के झटके की भयावहता का अंदाजा होता है। रिक्टर स्केल पर 5 से कम तीव्रता वाले भूकंपों को हल्का माना जाता है। साल में करीब 6000 ऐसे भूकंप आते हैं। जबकि 2 या इससे कम तीव्रता वाले भूकंपों को रिकार्ड करना भी मुश्किल होता है तथा उनके झटके महसूस भी नहीं किए जाते हैं। ऐसे भूकंप साल में 8000 से भी ज्यादा आते हैं। रिक्टर स्केल पर 5-5.9 के भूकंप मध्यम दर्जे के होते हैं तथा प्रतिवर्ष 800 झटके लगते हैं। जबकि 6-6.9 तीव्रता के तक के भूकंप बड़े माने जाते हैं तथा साल में 120 बार आते हैं। 7-7.9 तीव्रता के भूकंप साल में 18 आते हैं। जबकि 8-8.9 तीव्रता के भूकंप साल में एक आ सकता है। इससे बड़े भूकंप 20 साल में एक बार आने की आशंका रहती है। रिक्टर स्केल पर आमतौर पर 5 तक की तीव्रता वाले भूकंप खतरनाक नहीं होते हैं। लेकिन यह क्षेत्र की संरचना पर निर्भर करता है। यदि भूकंप का केंद्र नदी का तट पर हो और वहां भूकंपरोधी तकनीक के बगैर ऊंची इमारतें बनी हों तो 5 की तीव्रता वाला भूकंप भी खतरनाक हो सकता है। 8.5 वाला भूकंप 7.5 वाले भूकंप से करीब 30 गुना ज्यादा शक्तिशाली होता है। भूकंप के खतरे से कैसे बचा जा सकता है। इस पर विचार करना जरुरी है। हमें यह निर्धारित करना होगा कि नए घरों को भूकंप रोधी बनाएं। जिस स्थान पर घर बना रहे हैं उसकी जांच करा लें कि वहां जमीन की संरचना भूकंप के लिहाज से मजबूत है या नहीं।

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