Monday 30 March 2015

‘आप’ तो ऐसे ना थे जनाब

दिल्ली चुनाव में आम आदमी पार्टी के संयोजक अरविंद ने जितने नारे दिए आज वो सब ’जुमले’ साबित हो रहे हैं। आप के नारे  उलटा उसी पर तंज कस रहे हैं। दूसरी पार्टियों के जिस ‘राजनीतिक चरित्र’ पर आप हमला करती रही वे सब आज आम आदमी पार्टी पर फिट हो रहे हैं। सरकार बनाने के दो महीनों के भीतर ही आप में जो घमासान मचा है वह न केवल जनता के लिए बल्कि आप को दूर से ही समर्थन दे रहे लोगों को भी ठेस पहुंचाने वाला है। जो अरविंद केजरीवाल दूसरी पार्टी के नेताओं को मंचों से डिबेट के लिए ललकारते थे वो आज मीडिया से दूरी बना रहे हैं। पार्टी के भीतर-बाहर इतना हो-हल्ला मचता रहा लेकिन अरविंद केजरीवाल ने मीडिया के सामने आकर एक बार भी इस मसले पर सही तरीके से प्रतिक्रिया देने की जरूरत नहीं समझी। रविवार को हुई पार्टी की राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक में पार्टी के आंतरिक लोकपाल एडमिरल रामदास का हटा दिया गया। एक दिन पहले शनिवार को हुई नेशनल काउंसिल की बैठक के बाद स्थिति इस कदर बिगड़ गई कि अब पूरे विवाद पर किसी की सफाई की जरूरत तक नहीं बची है। लोकपाल का बैनर लिए जो आम आदमी पार्टी राजनीति में आई आज वह खुद ही अपनी पार्टी के आंतरिक लोकपाल को भूल गई। योगेंद्र यादव का कहना है कि आप नेताओं ने नेशनल काउंसिल की बैठक में आंतरिक लोकपाल रामदास को नहीं आने दिया। क्या पार्टी का इतनी जल्दी लोकपाल की अवधारणा से भरोसा उठ गया। आंतरिक लोकतंत्र की दुहाई देने वाली आम आदमी पार्टी का तानाशाही रवैया भी जनता के सामने खुलकर आ गया। ‘इंसान का हो इंसान से भाईचारा’ गीत गाने वाले केजरीवाल की पार्टी का ‘भाईचारा’ भी जनता से खूब देखा। बैठक और पार्टी के आंतरिक मसलों पर जनता से राय मांगने का दिखावा करने वाली आम आदमी पार्टी ने आखिर क्यों आज टीवी समाचार चैनलों के प्रतिनिधियों को बैठकस्थल के भीतर नहीं जाने दिया। बेहतर होता कि आज जनता देखती कि आखिर किस प्रक्रिया के तहत पार्टी ने अपने चार वरिष्ठ नेताओं को राष्ट्रीय कार्यकारिणी से बाहर कर दिया। योगेंद्र यादव और प्रशांत भूषण ने जितने संगीन आरोप अरविंद केजरीवाल और उनके गुट के नेताओं पर लगाए हैं, अगर वे सच साबित होते हैं तो यह न केवल आप कार्यकर्तार्ओं के साथ बल्कि दिल्ली और देश की उस जनता के साथ बड़ा धोखा होगा जिसने आप के उदय को ‘नई किस्म की राजनीति’ की शुरूआत समझा था। आम आदमी पार्टी के लिए अब सबसे बड़ी चुनौती यह है कि वह इस संकट से कैसे उबर पाती है और जनता के भरोसे का टूटने से कैसे बचाती है।

No comments:

Post a Comment