Friday 11 April 2014

आश्चर्य! सत्ता पक्ष ही लड़ रहा विपक्ष से

16वीं लोकसभा के लिए हो रहा चुनाव वाकई में ऐतिहासिक है। इस चुनाव मेें पहली बार ऐसा दिख रहा है कि सत्ता पक्ष ही विपक्ष से लड़ रहा है। सोनिया गांधी, राहुल के साथ ही सभी पार्टियों के पास आज अपनी अच्छाई बताने के बजाय केवल नरेन्द्र मोदी की कमी गिनाना मुद्दा रह गया है। यूपीए अध्यक्ष सोनिया और राहुल की सभाओं में तो लोग ऊबते नजर आ रहे हैं। राहुल अक्सर कहते हैं कि हम देश के लोगों को शक्ति देना चाहते हैं। उनसे कौन कहे कि देश की जनता देख रही है कि जिस व्यक्ति प्रधानमंत्री पद पर बैठे व्यक्ति की शक्ति छीन ली हो, वह देश के आम नागरिक को कैसे शक्ति दे सकता है। सच्चाई अगर देखी जाए तो आज सोनिया को देश सिर्फ इसलिए बर्दाश्त कर रहा है कि वह राजीव जी की पत्नी और इंदिरा गांधी की बहू हैं। राहुल और प्रियंका इसलिए महत्वपूर्ण है कि वह राजीव जी के बेटे और इंदिरा जी के नाती है। इसके सिवाय इन लोगों के निजी जीवन की ऐसी कोई खास उपलब्धि नहीं है, जिससे लोग इन्हें याद कर सकें। अगर इन लोगों का आचरण ऐसे ही रहा तो धीरे-धीरे इन लोगों का यह वजन भी उसी तरह से खत्म हो जाएगा, जैसे महात्मा गांधी और लाल बहादुर शास्त्री के परिवार के लोगों का। राहुल को यह बताना चाहिए कि चुनाव का प्रचार करने के लिए आखिर देश के प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह क्यों नहीं निकल रहे हैं। वह न तो मीडिया में दिख रहे हैं, न सोशल मीडिया में और न ही कार्यकर्ताओं के बीच। आखिर राहुल जी ने मनमोहन सिंह को कौन सी शक्ति दे रखी है कि वे इस कदर शक्तिहीन हो गए है कि चुनाव के दौरान अपनी बात भी नहीं कह पा रहे हैं। राहुल जी को यह भी बताना चाहिए कि उत्तर प्रदेश जैसे बड़े राज्य में उनका संगठन कहां पर है, जिस प्रदेश से वह खुद चुनाव लड़ा करते हैं। सवाल है कि जो अपने संगठन और सरकार में बैठे लोगों को शक्ति नहीं देना चाहता है, वह आम आदमी को कैसे शक्ति दे सकेगा। पिछले दस साल से सरकार आखिर किसकी रही। राहुल जी जो सपने दिखा रहे हैं, उसे पूरा करने के लिए क्या दस साल कम होते हैं। ऐसा करके राहुल जी लोगों का ध्यान मौजूदा परिस्थियों से भटकाना चाह रहे, जिससे आम आदमी अब जान चुका है।

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