Friday 28 March 2014

बात निकली है तो बहुत दूर तलक जाएगी

रमेश पाण्डेय
राष्ट्रीय स्वयं संघ ने भारतीय जनता पार्टी के उम्मीदवारों की घोषणा से पहले यह फार्मूला सुझाया था कि 70 वर्ष की उम्र पार कर चुके नेताओं को सीधे चुनाव न लड़ाया जाए। ऐसे लोगों को राजनीति में जीवित रखने के लिए पिछले दरवाजे यानि राज्यसभा के जरिए संसद में भेजे जाने का सुझाव संघ ने दिया था। संघ के इस सुझाव पर लालकृष्ण आडवाणी और मुरली मनोहर जोशी सरीखे कई नेता नाखुश हुए। इन नेताओं ने इस कदर नाराजगी जताई कि संघ के फार्मूले को भाजपा अमल में नहीं ला सकी। अन्तत: चुनाव के मौके पर किसी नए बखेड़े से बचने के लिए संघ भी अपने इस फार्मूले को लागू करने के लिए दबाव नहीं बनाया। अब जब चुनावी जंग छिड़ गई है और उम्मीदवारों ने मैदान में आकर तरकश संभाल लिया है तो कांग्रेस के वरिष्ठ नेता,  केंद्रीय ग्रामीण विकास मंत्री जयराम रमेश ने एक इंटरव्यू में कहा है कि राहुल गांधी के प्रधानमंत्री बनने की स्थिति में उनकी कैबिनेट युवा होगी। उनका कहना है कि किसी भी संगठन में नई जान डालने के लिए पीढी में बदलाव बहुत जरुरी होता है। अन्यथा संगठन जड़ हो जाएगा। इसमें कोई शक नहीं है कि कांग्रेस की पीढ़ी में बदलाव हो रहा है। इसका स्वागत किया जाना चाहिए। इसे बढ़ावा दिया जाना चाहिए।     बेबाक ढंग से टिप्पणी करने वाले रमेश अगले महीने साठ साल के हो जाएंंगे। उन्हें राहुल गांधी का करीबी समझा जाता है। रमेश चाहते हैं कि 70 साल से ज्यादा उम्र के नेता नए लोगों के लिए रास्ता बनाए। उन्होंने ऐसे नेताओं के लिए सलाहकार के ओहदे की वकालत की है। केन्द्रीय मंत्री के इस बयान पर बचाव करते हुए कांग्रेस ने जयराम रमेश के विचार को उनकी निजी राय बताया है। यह तो दो अलग-अलग वाकिए हैं, पर सच यह है कि बात निकली है तो दूर तलक जाएगी। 16वीं लोकसभा चुनाव में पौने दो करोड़ मतदाता ऐसे है जिनकी उम्र 18 से 19 वर्ष के बीच है। सवाल है कि देश के हर प्रोफेशन में उम्र की न्यूनतम और अधिकतम सीमा यानि अर्हता और रिटायरमेंट की आयु निर्धारित है। फिर सवाल है कि राजनीति में रिटायरमेंट की उम्र का निर्धारण क्यों नही। आज तो यह बात सामान्य लग रही है, पर वह दिन दूर नहीं जब इस पर आवाज उठेगी, आन्दोलन होंगे और मजबूर होकर राजनीतिक दलों को नेताओं के रिटायरमेंट की उम्र का निर्धारण करना होगा। कम से कम चुनाव लड़ने वाले उम्मीदवारों पर तो यह लागू ही होना चाहिए। तारीफ की जानी चाहिए वित्त मंत्री पी. चिदंबरम की, जिन्होंने खुद समय रहते इस बात को स्वीकार कर लिया कि उनकी उम्र 65 वर्ष से अधिक की हो गयी है, वह अब चुनाव लड़ पाने के लिए सक्षम नहीं है। दुर्भाग्य है कि राजनीतिक दलों की ओर से जो प्रतिक्रिया आयी वह स्वागतयोग्य नहीं रही। चुनाव मैदान में उतरे सभी उम्मीदवार नव मतदाताओं को रिझाने की कोशिश कर रहे हैं। नौजवानों को कभी रोजगार देने के नाम पर तो कभी लैपटाप और बेरोजगारी भत्ता देने के नाम पर लुभाया जा रहा है। सोचिए अगर युवा मतदाताओं ने यह निर्णय कर लिया कि अब वह उस कुर्सी पर खुद बैठेगा, जिस पर बैठे लोग उन्हें तरह-तरह के प्रलोभन दे रहे हैं तो स्थिति क्या होगी। निश्चित रुप से आने वाले समय में ऐसा होने वाला है।

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