Thursday 27 March 2014

कांग्रेस के घोषणापत्र में 'चालबाजी'


रमेश पाण्डेय
दो शब्द हैं, चालाकी और चालबाजी। इन दोनों शब्द के निहितार्थ तो एक जैसे हैं पर मायने अलहदा है। चालाकी वह है जो प्रभावित व्यक्ति को सहज मालूम हो जाया करती है, पर चालबाजी वह है जिसका एहसास प्रभावित व्यक्ति लंबी अवधि बीत जाने के बाद कर पाता है। 16वंी लोकसभा के चुनाव में कुछ ऐसा ही कांग्रेस पार्टी देश की जनता के साथ कर रही है। कांग्रेस के घोषणापत्र को देखकर ऐसा लगने लगा है। पिछले दस सालों में तेजी से दो समस्याएं उभरकर सामने आयी हैं। एक वह है जिससे हर नागरिक परेशान है और दूसरी वह है जिससे हर नागरिक जूझ रहा है। इन दोनों समस्याओं के लिए सीधे तौर पर देश की सत्ता पर बैठी यूपीए-1 और यूपीए-2 की सरकार जिम्मेदार है। जिन समस्याओं का जिक्र ऊपर किया गया है। वह हैं मंहगाई और भ्रष्टाचार। मंहगाई से हर नागरिक परेशान है और भ्रष्टाचार से हर कोई जूझ रहा है। पिछले दस साल के कांग्रेस की अगुवाई में बनी केन्द्र की सरकार की उपलब्धियों पर नजर डाले तो पेट्रोलियम पदार्थों में बेतहाशा वृद्धि, गुणवत्तापूर्ण शिक्षा में बेतहासा मंहगाई, रसोई गैस की कीमत में तेजी से उछाल, व्यापारिक क्षेत्र में एफडीआई को आमंत्रण, उर्वरक पर सब्सिडी में कटौती, घोटालों की बरसात जैसी उपलब्धियां इस सरकार के खाते में हैं। इन दस सालों में देश ने न तो शिक्षा के क्षेत्र में उल्लेखनीय प्रगति की, न चिकित्सा के क्षेत्र में, न रोजगार के क्षेत्र में। सवाल उठता है कि तो आखिर पिछले दस वर्षों में इस सरकार ने किया क्या। चुनाव के समय में पार्टियों का घोषणा पत्र उस दल की नीति और सिद्धांतों का आईना होता है। कांग्रेस का जो घोषणापत्र आया है उसमें न तो दल की नीतियां है और न ही सिद्धांत। अगर कुछ है तो बस एक ही तथ्य नजर आता है कि घोषणापत्र के जरिए सत्ता पर पहुंचने की प्यास। कांग्रेस का घोषणापत्र अब तक के इतिहास में तो कभी ऐसा नहीं रहा। पिछले दस साल से सत्ता पर काबिज कांग्रेस की हालत 2014 के लोकसभा चुनाव में काफी खराब है। हार की आशंका को देखते हुए पार्टी के कई नेता चुनाव लड़ने तक तैयार नहीं हैं। ऐसे में कांग्रेस पार्टी ने घोषणा पत्र के जरिए आखरी पाशा फेंका है। कांग्रेस ने घोषणा पत्र के माध्यम से निम्न और मध्यम वर्ग के लोगों को अपनी ओर आकर्षित करने की कोशिश की है। अब देखना यह है कि कांग्रेस की घोषणाओं से लोग कितने आकर्षित होते हैं और पार्टी को सबसे बुरी संभावित हार से बचा पाते या नहीं?
घोषणापत्र में कहा गया है कि कांग्रेस सत्ता में आयी तो कम आय वाले लोगों के लिए आर्थिक सुरक्षा का प्रावधान होगा, राइट टू हेल्थ, राइट टू होम, राइट टू सोशल सेक्यूरिटी होगी, वृद्ध और विकलांगों के लिए फिक्स पेंशन योजना का प्रावधान होगा, उच्च विकास दर को वापस लाएंगे, अगले तीन साल में आठ फीसद विकास दर करेंगे, भ्रष्टाचार निरोधी विधेयक सबसे बड़ी प्राथमिकता होगी, एससी, एसटी और ओबीसी के लिए रोजगार बढ़ाएंगे, जरूरतमंदों को ही सब्सिडी देंगे, 10 लाख आबादी वाले शहरों में हाईस्पीड ट्रेन चलाएंगे, भूमिहीनों को घर दिया जाएगा, ब्लैकमनी को रोकने के लिए विशेष अधिकारी की नियुक्ति करेंगे, अगले पांच साल में सभी भारतीयों को बैंक एकाउंट की सुविधा प्रदान करेंगे, मैनुफैक्चरिंग क्षेत्र में दस फीसद विकास करेंगे। यह सारे वायदे कांग्रेस ने करके ऐसा साबित करने की कोशिश की कि वह देश के नागरिकों की सबसे बड़ी हितैषी है। इस घोषणापत्र में इस बात का उल्लेख नहीं किया गया है कि देश में तेजी से बंद हो रहे उद्योगों को पुनर्जीवित करेंगे या नहीं। परंपरागत उद्योगों की दशा को सुधारेंगे या नहीं, कृषि पर आधारित आबादी को सुविधाएं देेंगे या नहीं। तेजी से बढ़ रही बेरोजगारों की फौज के लिए रोजगार उपलब्ध कराएंगे या नहीं। देश की सीमा पर बने असुरक्षित माहौल पर कैसे नियंत्रण कायम करेंगे आदि-आदि। कांग्रेस ने इस घोषणापत्र में ऐसी चालबाजी की है कि जिसका ऐहसास लोगों को लंबी अवधि के बाद हो सकेगा। घोषणापत्र में की गई इस चालबाजी को देश के नागरिकों खासकर युवा मतदाताओं को समझना होगा। देश में पहली बार वोट डालने जा रहे तकरीबन ढाई करोड 18 से 19 वर्ष की उम्र वाले मतदाताओं को यह बात समझनी होगी कि कांग्रेस की नीतियों और सिद्धांतों में उसके लिए क्या है। अगर ऐसा नहीं हुआ तो एक बार फिर देश का मतदाता राजनीतिक छल का शिकार होगा।

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