शार्पविले में हुए नरसंहार की दुनिया भर में आलोचना हुई थी.
वर्ष 1964 में जेल जाने के बाद
नेल्सन मंडेला विश्व भर में नस्लभेद के ख़िलाफ़ संघर्ष के एक प्रतीक बन गए.
लेकिन नस्लभेद के ख़िलाफ़ उनका विरोध इससे कई साल पहले शुरू हो चुका था.बीसवीं सदी के ज़्यादातर हिस्से में दक्षिण
अफ़्रीका में नेशनल पार्टी और डच रिफ़ॉर्म चर्च का बोलबाला था. उनका
सिद्धांत ‘अफ़्रीकनर’ ढंग से बाइबल को पढ़ने और बोएर लोगों की सत्ता में
भूमिका निभाने पर आधारित था.
नस्लभेद
यानि ‘एपरथाइड’ की जड़ें दक्षिण अफ़्रीका में यूरोपीय शासन के शुरूआती
दिनों से ही मौजूद थीं. लेकिन 1948 में नेशनल पार्टी की पहली सरकार के
सत्ता में आने के बाद नस्लभेद को क़ानूनी दर्जा दे दिया गया. इस चुनाव में
सिर्फ़ श्वेत लोगों ने ही मत डाले थे.
नस्लभेद के तीन स्तंभ
क़ानूनी तौर पर नस्लभेद के तीन स्तंभ थे:
- रेस क्लासिफ़िकेशन एक्ट – हर उस नागरिक का वर्गीकरण जिस पर ग़ैर-यूरोपीय होने का संदेह.
- मिक्स्ड मैरिज एक्ट – अलग-अलग नस्ल के लोगों के बीच विवाह पर प्रतिबंध
- ग्रुप एरियाज़ एक्ट – कुछ तय नस्ल के लोगों को सीमित इलाक़ों में रहने के लिए बाध्य करना
अश्वेत लोगों के अधिकारों के लिए अफ़्रीकन नेशनल
कांग्रेस यानि एएनसी की स्थापना 1912 में हो गई थी. नेल्सन मंडेला इस
संस्था से 1942 में जुड़े. नौजवान, समझदार और बेहद प्रेरित युवाओं के समूह के
साथ मिलकर मंडेला, वॉल्टर सिसुलु और ऑलिवर टेंबो ने धीरे-धीरे एएनसी को एक
राजनीतिक जन आंदोलन में परिवर्तित करना शुरू किया. नेशनल पार्टी की सरकार के क़दमों पर एएनसी का जवाब
समझौता न करने वाला था. वर्ष 1949 में तय हुए ‘कार्रवाई के कार्यक्रम’ के
अनुसार श्वेत लोगों के आधिपत्य को समाप्त करने के लिए बहिष्कार, हड़ताल,
नागरिक अवज्ञा और असहयोग का आह्वान किया गया. इसी समय एएनसी के पुराने चेहरों को हटाकर नए
नेतृत्व ने कमान संभाली. वॉल्टर सिसुलु नए महासचिव बने और मंडेला पार्टी की
राष्ट्रीय कार्यकारी समिति में शामिल हुए.
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