Wednesday 25 December 2013

किसके पाले में होगा मुसलमान?


2014 में होने वाले लोकसभा चुनाव में अब केवल कुछ ही महीने शेष रह गए हैं। प्रमुख विपक्षी दल भारतीय जनता पार्टी ने तो प्रधानमंत्री पद के लिए अपने उम्मीदवार की भी घोषणा कर दी है। गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी भाजपा के उम्मीदवार हैं जबकि संभावना जताई जा रही है कि कांग्रेस के उपाध्यक्ष राहुल गांधी कांग्रेस की तरफ से प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार हो सकते हैं। हालांकि कांग्रेस ने अभी तक इस बारे में कोई आधिकारिक घोषणा नहीं की है। भारत में बात जब चुनाव की हो तो मुसलमान मतदाता के बारे में अनायास ही ध्यान चला जाता है। भारत में मुसलमान लगभग 13 से 14 फीसदी हैं और लोकसभा की कई सीटों पर चुनावी फैसलों को सीधे प्रभावित करते हैं। दिल्ली की सत्ता तक पहुंचने की गंभीर दावेदारी करने वाली कोई भी पार्टी शायद उनको नजरअंदाज नहीं करना चाहेगी। इसलिए ये बहुत अहम मुद्दा है कि भारतीय मुसलमान इस समय क्या सोच रहे हैं और आने वाले चुनावों में उनका रुख क्या होगा? मुसलमानों की आर्थिक और सामाजिक स्थिति जानने के लिए दिल्ली उच्च न्यायालय के पूर्व न्यायाधीश जस्टिस सच्चर की अध्यक्षता में बनी सच्चर कमेटी ने साल 2006 में अपनी रिपोर्ट सरकार को सौंपी थी। उस रिपोर्ट में कहा गया था कि विकास के सभी पैमानों पर मुसलमानों की हालत देश में बेहद पिछड़ी मानी जाने वाली अनुसूचित जाति-अनुसूचित जनजाति के लगभग बराबर है। केंद्र की तत्कालीन सरकार यूपीए-1 ने इसे फौरन स्वीकार तो कर लिया लेकिन छह-सात साल के गुजर जाने के बाद जितनी भी रिपोर्ट आई हैं, उन सभी का मानना है कि मुसलमानों की हालत में कोई खास सुधार नहीं हुआ है। सितंबर 2013 में काउंसिल फॉर सोशल डेवेलपमेंट (सीएसडी) की तरफ से जारी एक रिपोर्ट के अनुसार अल्पसंख्यकों के लिए बनाई गई सरकारी योजनाओं का ज्यादातर लाभ या तो बहुसंख्यक समाज के लोग या गैर-मुसलमान अल्पसंख्यक समाज के लोग उठा रहे हैं। सीएसडी की रिपोर्ट के मुताबिक 25 फीसदी से अधिक मुसलमान जनसंख्या वाले देश के जिन 90 जिÞलों में एमएसडीपी कार्यक्रम की शुरूआत की गई थी, उन इलाकों में केवल 30 फीसदी मुसलमानों तक इन योजनाओं का लाभ पहुंचा। बात सिर्फ सच्चर कमेटी की सिफारिशों की नहीं है, दूसरे कई मामलों में भी मुसलमानों को लगता है कि यूपीए सरकार ने बीते नौ सालों में उनके लिए कुछ खास नहीं किया है। जमीयतुल-उलमा-ए-हिंद के महासचिव महमूद मदनी कहते हैं कि यूपीए सरकार से मुसलमानों को दो नुकसान हुए हैं। मदनी कहते हैं कि एक नुकसान तो ये हुआ कि काम नहीं किया। उससे बड़ा नुकसान ये किया कि कामों का ऐलान करके मुसलमानों के तुष्टीकरण का इल्जाम अपने ऊपर ले लिया और मुसलमानों का कोई फायदा भी नहीं किया। अल्पसंख्यक मामलों के केंद्रीय मंत्री के रहमान खान कहते हैं कि सच्चर कमेटी की रिपोर्ट के आधार पर सरकार ने कुल 72 सिफारिशें चुनी थीं। उनमें से तीन को नहीं माना गया जो कुछ खास नहीं थी। बाकी 69 में से सरकार ने 66 को लागू कर दिया है और केवल तीन सिफारिशों पर अमल किया जाना बाकी है। अल्पसंख्यकों के लिए चलाई जा रही योजनाओं की जांच के लिए अल्पसंख्यक मंत्रालय ने एक कमेटी का इसी साल गठन किया है। उम्मीद है कि उसकी रिपोर्ट साल 2014 के शुरूआती महीनों में आएगी।

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